Thursday, March 8, 2012

सम भाव में रहे



अक्सर यह होता है की जिससे हम प्रेम करते है उससे अति तक प्रेम करते है,
और जिससे नफरत करते है उससे अति तक नफरत करते है।
जिससे जितना अधिक प्रेम करते है, हम उससे अपेक्षाए भी बहुत अधिक लगाये रहते है,
और जिससे नफरत करते है, उसकी हर एक बात पर अपने लिए बुरे की उम्मीद करते है।
कहा जाता है की अति हमेशा बुरी होती है फिर वह प्रेम की हो या नफरत की।
जब हम किसी के प्रति अपने अति प्रेम का प्रदर्शन करते है,
तो वह किसी अनजाने डर से भर जाता है और हमसे दूरी बना सकता है,
और यदि ऐसा नहीं होता है तो देखने वाले दूसरे लोग उसे डराने की कोशिश करते है
या हमें किसी तरह से विचलित करते है।
एक बार हमसे अधिक प्रेम पाया हुआ हमसे हमेशा ऐसे ही प्रेम की अपेक्षा रखता है।
यदि उसकी अपेक्षा से  हम ज़रा सा भी कम निकले कि, वह हमारे लिए बुरा सोचने लगता है। 
ठीक ऐसे ही जिनसे हम अति नफरत करते है वह हमारे अचानक किये गए  प्रेमपूर्ण व्यव्हार को भी गलत नज़र से ही देखेगा और हमारे अच्छा चाहने पर भी वह  बुरा ही चाहेगा ।
एक बार जो रिश्ता बन जाये (प्रेम/नफरत) उसे बदल पाना बहुत कठिन होता है।
कौन कब दोस्त से दुश्मन हो जाये या किस दुश्मन से दोस्ती हो जाये यह समझ पाना बहुत मुश्किल है। 
यदि हम किसी के प्रति बहुत अधिक प्रेम और नफरत को प्रदर्शित न करे तो संभव है कि सभी के लिए अच्छा बने रहे। किसी के प्रति हमारा अति प्रेम या नफरत, हमारे आस -पास मौजूद दूसरे लोगो को खटक सकता है 
और वे हमारे लिए कठिनाई पैदा कर सकते है।
यदि हम सम भाव में रहने की कोशिश करे,
सभी से सामान व्यवहार रखे तो शायद हम ज्यादा खुश रह सकते है।
 एक बार सम भाव में रहकर देखिये,सभी हमारे अपने नज़र आयेंगे।



 

 

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