Friday, April 20, 2012

सब कुछ हम ही कर लेंगे ?

हम सब कर सकते है यह सही है ,किन्तु क्या सब कुछ हम ही कर लेंगे ?
प्रत्येक के लिए सफलता का अपना अलग मापदंड होता है।
एक व्यक्ति जिसे अपनी असफलता मानता है,
उसे ही दूसरा अपनी सफलता मान सकता है। 
अपनी छमता को ध्यान में रखकर अपने लक्ष्य  का निर्धारण करे तो 
यक़ीनन सफलता की ओर स्वयं को बढ़ता पाएंगे।
गहराई से विचार करे तो पाएंगे की कोई भी व्यक्ति 
किसी एक छेत्र में ही वास्तविक सफलता हासिल कर पाता है।
इस सफलता के बाद बाकि सफलताये उसकी ओर स्वयं ही खिची चली आती है। 

क्या सचमुच हम बुरे है ?

हम अक्सर स्वयं की बुराइयों को सोच-सोचकर परेशान होते रहते है।
अजीब बात तो यह है कि हम स्वयं को बुरा तो मानते है,
किन्तु बुराई को कम करने की कोशिश बिलकुल  नहीं करते है।
फिर जिसको हम समाप्त ही नहीं करना चाहते है,
उसे सोच-सोचकर परेशान क्यों होना ?
हम बुरे है यह महत्वपूर्ण नहीं हो सकता किन्तु हममे कितनी अच्छी बाते है,
यह ज़रूर महत्व  की हो सकती है।
स्वयं को बुरा कहकर दुखी होने से अच्छा है कि,
अपनी अच्छाइयो पर ध्यान दे और स्वयं को खुश रखे।
जिन बातो को हम बार-बार दोहराएंगे वह पक्का होता जाता है।
क्यों न अपनी अच्छाइयो को बढ़ाते जाये और देश / समाज की तरक्की की  सोचे।
अच्छाईया बढती गई तो बुराइया अपने आप ही समाप्त होते जाएगी।

Friday, April 6, 2012

परिणाम बदला जा सकता है

घटनाये पूर्व निर्धारित होती है और वे अपने समय पर घटती भी है।
भाग्य के भरोसे बैठे लोगो को भी पूर्व निर्धारित घटनाओ का सामना करना पड़ता है ।
भाग्य में होना कहकर कर्महीन व्यक्ति सब कुछ को स्वीकार करते रहते है
और कर्मयोगी अपने प्रयासों से भाग्य को बदलने की कोशिश करते है।
कर्मयोगी को भी पूर्व निर्धारित घटनाओ से दो-चार होना पड़ता है,
किन्तु ये प्रयासों से स्वयं को इतना मज़बूत कर चुके होते है कि,
घटनाये अपना परिणाम बदल देती है। 
कहने का तात्पर्य है कि,
जो होना है वह ज़रूर होगा किन्तु हम अपने प्रयासों से 
घटनाओ के परिणाम को बदल सकते है।
भाग्य का रोना छोड़कर अपने कर्म पर भरोसा करना शुरू करे।

Sunday, April 1, 2012

छ्मता के प्रदर्शन से बचे

हमें अपनी छ्मता के अति प्रदर्शन से बचना चाहिए।
किसी कार्य को कर जाने का दावा करने से अच्छा होगा कि 
उस कार्य को कर लेने के बाद अपनी बात कही जाये।
हममे जो भी छमता है वह सिर्फ हमारे लिए ही महत्वपूर्ण होती है,
दूसरे भी उसको उतना ही महत्व देंगे ज़रूरी नहीं है।
ऐसी उम्मीद करके हम स्वयं के साथ धोखा करते है।
अपनी छ्मता का उपयोग करके हम अपने लिए बहुत कुछ कर सकते है,
किन्तु जब हमारी छ्मता  का दुसरे लोग दुरूपयोग करने पर आते है,
तब हम स्वयं एक उपयोग की वस्तु हो जाते है।
जिसे भी हमारी छ्मता/योग्यता से खतरा महसूस होता है,वह अपनी सारी छ्मता हमे मिटा देने पर लगा देता है।