अल्पकालिक संबंधो में पसंद-नापसंद वाजिब है, किन्तु
दीर्घकालिक संबंधो में समर्पण और विश्वास ही मुख्य होता है |
किसी भी रिश्ते को बनाये रखने के लिए
दोनों ओर से समझौता होते रहना आवश्यक होता है |
जब बात पसंद और नापसंद की आती है तो,
हम अपने पसंद के व्यक्ति की सभी बुराइयों को नज़रंदाज़ कर देते है |
हम उसके लिए कोई भी समझौता करने को तैयार हो जाते है |
जब हमने समझौता करने की ज़िम्मेदारी उठा रखी है तो फिर दूसरे
के द्वारा समझौता किये जाने की शर्त हम नहीं रख सकते |
आगे जहाँ तक हमारी हिम्मत होती है,
हम अपने बनाये रिश्ते को समझौता कर-करके बचाते है
और जब हिम्मत जवाब देने लगती है
तब हमें अपने फैसले /समझौते पर अफ़सोस होता है |
मगर दोस्तों तब तक बहुत देर हो चुकी होती है |
वास्तव में जो आपका साथ दे सकते थे उन्हें तो आप कब के पीछे छोड़ चुके होते है |
संकट के समय जो आपके पास होता है वास्तव में संकट तो उसी के द्वारा पैदा किया गया होता है |
अब फिर आपके पास जो करने को बचता है वह होता है एक और समझौता |
सार- कोई भी दीर्घकालिक सम्बन्ध समझौता करके मत बनाइये |
सही फैसला दिल और दिमाग दोनों के उपयोग से ही संभव होता है |