Friday, December 2, 2011

स्वयं को पहचाने

जो स्वयं से परिचित नहीं है उसे दूसरो के दिए पहचान से ही काम चलाना पड़ता है|
जब आपको अपना नाम ही नहीं मालूम होगा तो आप किसी भी नाम के पुकारे जाने पर उसे अपना नाम समझ सकते है|
तब सोचे कि प्रत्येक आपको अपनी पसंद का नाम दे रहा होगा |
आपकी असली पहचान का फिर क्या होगा ?
ज्यादातर हम इसी कमजोरी के शिकार है |
स्वयं की योग्यता को नहीं पहचान पाने वाले, उस फुटबाल  की तरह कहे जा  सकते है जिसका अपना कोई लक्ष्य नहीं होता है |
जिसके भी पैरो पर आ जाये वही उसे अपने मकसद के लिए उपयोग करता रहता है |
यदि सचमुच आप स्वयं को अक्लमंद समझते है तो
किसी भी तरह के पूर्वाग्रह का शिकार न होते हुए
अपनी वास्तविक योग्यता को पहचानिए और स्वीकार कीजिये |
यह पहचान आपको अपने अन्दर स्वयं से तलाश करनी होगी | 
ज्यादातर लोग अपनी वास्तविक योग्यता को स्वीकार करने से घबराते है/बचते है 
और यही पर भूल कर जाते है |
क्योकि आपकी वास्तविक योग्यता ही आपको सफल होने में मदद कर सकती है |
जैसे यदि आपने गणित विषय से पढाई की है तो 
आप किसी हॉस्पिटल में चिकित्सक हो जाने के विषय में नहीं सोच सकते |
यदि आप पैरो से चलने में अक्षम है तो आप दौड़ नहीं जीत सकते यह स्वीकार करना ही होगा |
कल्पना आप कर सकते है किन्तु जीवन कल्पनाओ से परे है |
एक न एक दिन आपको सच का सामना करना ही पड़ता है |
फिर क्यों हम स्वयं को धोखे में रखते है?क्यों हमें  लगता है कि हम यह भी कर सकते है,
हम वह भी कर सकते है और अंत में पता चलता है कि
हम कुछ भी सही ढंग से नहीं कर पाए और असफल घोषित हो गए,
फिर क्या करते है ?
जो भी जैसा भी जीवनयापन लायक काम ढूढ़ लेते है 
और सारी जिंदगी अपनी नाकामी का रोना रोते है |
बात-बात पर शिकायत करते है ?
स्वयं से तो कुछ कर नहीं पाए तो औरो को भी नहीं करने के लिए समझाते है,
उन्हें अपनी नाकामी का हवाला देकर दुष्प्रेरित करते है|
सब कुछ जानते हुए भी हम स्वयं पर भरोसा नहीं कर पाते है 
और अपनी असली योग्यता को भूलकर दूसरो की योग्यता को अपनाने के लिए दौड़ पड़ते है
और बस यही पर चूक हो जाती है |
दूसरे की योग्यता  को सही तरीके से अपना नहीं पाने के कारण नुकसान तो होता ही है
साथ ही हम अपनी योग्यता से जो पा सकते थे वह भी हाथ से जाते रहता है |


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