Thursday, February 16, 2012

संचय

धन का संचय बुरा नहीं है किन्तु धन संचय के लिए किसी भी हद को पार कर जाना ज़रूर बुरा है।
पहले तो हम यह संचय विषम परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए करते है, फिर परिवार को सुरक्षित रखने के लिए,उसके उपरांत बच्चो की पढाई,फिर मकान,फिर बच्चो की शादी,फिर-फिर-फिर-.........।
परिवार की ज़िम्मेदारी को निभाना ज़रूरी है,किन्तु अपने संस्कार,अपने ईमान को बेचकर उस पैसे से संस्कारवान बच्चे,सुखदायी मकान और शांतिपूर्ण वातावरण निर्मित नहीं किया जा सकता है।
सच में, सभी इस बात को जानते है फिर भी स्वयं को बदलने की कोशिश नहीं करते।
हम अपने बचपन के कष्टों की दुहाई देकर अपने बच्चो को अपने परिवार को अच्छा भविष्य देने की बात कहते है, किन्तु हमारे गलत कार्यकलापो से दुसरो का बचपन उनका परिवार कष्टों को सहने के लिए मजबूर होते है,
क्या उनके बारे में भी कभी हमने सोचा है?
दोस्तों संचय ज़रूर  करे लेकिन अपनी ज़रूरतों को सीमित रखकर,अपने खर्चे घटाकर।
जिन पैसो का हिसाब आप अपने परिवार / देश  को नहीं दे पाते है, उन पैसो से दुनिया के ऐशो-आराम के  संसाधन तो खरीद सकते है पर वास्तविक सुख आपसे काफी दूर हो चुके होते है। 
जिसके पास पैसे आते है तो बस आते ही चले जाते है। वह बस -बस बोलते थक जाता है पर पैसे आने नहीं रोक पाता। जिसके पास पैसे नहीं आते वह पूरी ज़िन्दगी पैसो के इंतजार में काट देता है पर उसे पैसो के दर्शन नहीं होते। 
बेहिसाब  आय का हिसाब यदि अपने बच्चो को नहीं दे पाए तो उनके संस्कारवान / ईमानदार  होने की कल्पना करके आप स्वयं को और धोखा  मत दीजियेगा। जो आपने बोया है उस फसल को काटना भी आपको ही पड़ेगा।  
जो स्वयं नहीं कमा सकते /जिन्हें कमाने का मौका नहीं मिलता  वे ही ईमानदारी की बात  करते है ? ऐसा सोचकर प्रत्येक बेईमान अपने आपको तसल्ली देता रहता है और सिर्फ और सिर्फ अपने आप को धोखा देते रहता है।
कभी इन बातो को गंभीरता से ज़रूर सोचियेगा। 
परिवार की ज़िम्मेदारी यदि हमारे ऊपर है तो समाज की भी ज़िम्मेदारी हमारी ही है।

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