ज़रूरते/इच्छाए बढ़ी हुई हो और
उस अनुपात में सफलता न मिल पाए तो निराशा होगी ही।
गैर ज़रूरी उद्देश्यों को पूरा करने के चक्कर में
हम ज़रूरी बातो को नज़रंदाज़ कर जाते है।
समय निकल जाने के बाद पछतावे
और निराशा के सिवाय हमारे हाथ में और कुछ नहीं रह जाता।
ज़रूरतों /इच्छाओ को सीमित रखकर निराशा से बचा जा सकता है।
निरंतर अपनी छमता को बढ़ाते रहे
ऐसा करने से आत्मविश्वास में कमी नहीं आएगी।
ज़रा सोचकर देखिये कि जिन कामो में हम पारंगत होते है,
उन कामो को करते समय
हमारे उत्साह और आत्मविश्वास में कभी कमी नहीं होती।छमता से अधिक ज़िम्मेदारी मिले तो आत्मविश्वास डगमगाएगा ही।
छमता को बढाने के लिए ज़िम्मेदारी उठाते रहना ज़रूरी होता है,
किन्तु स्वयं को नुकसान पहुचाकर उठाई गई ज़िम्मेदारी को
समझदारी नहीं कही जाएगी।
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