Friday, December 23, 2011

पसंद-नापसंद


अल्पकालिक संबंधो में पसंद-नापसंद  वाजिब है, किन्तु 
दीर्घकालिक संबंधो में समर्पण और विश्वास ही मुख्य होता है |
किसी भी रिश्ते को बनाये रखने के लिए 
दोनों ओर से समझौता होते रहना आवश्यक होता है |
जब बात पसंद और नापसंद की आती है तो,
हम अपने पसंद के व्यक्ति की सभी बुराइयों को नज़रंदाज़ कर देते है |
हम उसके लिए कोई भी समझौता करने को तैयार हो जाते है |
जब हमने समझौता करने की ज़िम्मेदारी उठा रखी है तो फिर दूसरे
के द्वारा समझौता किये जाने की शर्त  हम नहीं रख सकते |
आगे जहाँ  तक हमारी हिम्मत होती है,
हम अपने बनाये रिश्ते को समझौता कर-करके बचाते है 
और जब हिम्मत जवाब देने लगती है 
तब हमें अपने फैसले /समझौते पर अफ़सोस होता है |
मगर दोस्तों तब तक बहुत देर हो चुकी होती है | 
वास्तव में जो आपका साथ दे सकते थे उन्हें तो आप  कब के पीछे छोड़ चुके होते है |
संकट के समय जो आपके पास होता है वास्तव में संकट तो उसी के द्वारा पैदा किया गया होता है |
अब फिर आपके पास जो करने को बचता  है वह  होता है  एक और समझौता |
सार- कोई भी दीर्घकालिक सम्बन्ध  समझौता करके मत  बनाइये | 
सही  फैसला  दिल  और दिमाग दोनों के उपयोग  से ही संभव  होता है |


















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