जब हमें यह लगता है की हमें सब कुछ आता है,
तो यह हमारा अभिमान है |
तो यह हमारा अभिमान है |
ऐसे समय में दुनिया वाले हमसे दूरी बनाने लगते है |
हमसे किनारा कर लेते है |
जब हमें यह लगता है की हमें कुछ भी नहीं आता, तो भी यह हमारा अभिमान है |
ऐसे समय में हम स्वयं ही दुनिया वालो से दूरी बनाने लगते है |
औरो से किनारा कर लेते है |
उपरोक्त दोनों ही तरह के अभिमान हमें अकेला कर देते है |
यदि हम स्वयं को कर्म करने वाला भर मान ले तो
दोनों ही तरह के अभिमान से बच सकते है |
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