दूसरो के हितो को ध्यान में रखकर नहीं किया जाता।
कोई भी कार्य जिसमे धन\सम्मान आदि के अर्जन की सम्भावना रहती है,
वहा पर जनहित का दावा खोखला ही साबित होता है।
इन कार्यो को गहराई से देखे तो पाएंगे की कही न कही समाज और मानवता के साथ
धोखा ही किया जा रहा है।
व्यवसाय करने वाला,
अपने प्रतिद्वन्दियो \विरोधियो को लाभ का लालच देकर अपनी तरफ कर लेता है।
कोई मजबूर होकर बेईमानी को अपनाता है
तो कोई थोडा और कमा लेने का लालच पाले हुए है।
आम आदमी की सुरक्षा करने वालो को
ये व्यवसायी खरीदकर
अपने व्यवसाय को बढ़ाने और लाभ कमाने के अलावा और कुछ नहीं सोचते है।
फिल्म जगत,विज्ञापन,सीरियल,पत्रकारिता,न्याय आदि जैसे
कितने ही सन्दर्भ लिए जा सकते है जो सीधे मानव समाज को प्रभावित करते है।
आम दर्शक अपने अन्दर की कुंठा को मिटाने,
अपने पापी मन को राहत पहुचाने के लिए
सड़ी-गली और विकृत संस्कृति को दर्शाने वाली
और मौका मिलने पर देखे हुए दृश्यों को
अपनी असल जिंदगी में अपनाने से नहीं चूकते।
एक आम आदमी
जिसे अपने घर परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने से ही फुर्सत नहीं होती है,
जिसे अपने घर परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने से ही फुर्सत नहीं होती है,
ऐसे में उसे अच्छे - बुरे की समझ आ पाना बहुत कठिन हो जाता है।
बड़े स्थानों पर बैठे लोगो को इस विषय में गंभीरता से सोचना चाहिए और अपने स्वार्थ से ऊँचा उठकर
सीधे मानव को प्रभावित करने वाले विषयों को
व्यवसायीकरण से बचाना चाहिए।
मै फिर से दोहराना चाहूँगा कि,
स्वार्थ के बिना व्यवसाय नहीं किया जा सकता और व्यवसाय,
दूसरो के हितो को ध्यान में रखकर नहीं किया जाता।
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