प्रश्न-इतना पढ़ने के बाद भी नौकरी नहीं मिलती तो पढने से क्या फायदा ?
उत्तर-
सही प्रश्न-
समस्या यह नहीं है कि नौकरी क्यों नहीं मिलती,समझने वाली बात तो ये है कि नौकरी किसको मिलती है ?
कारण -
वास्तव में हम अपनी पढाई का लक्ष्य ही नौकरी को बना लेते है,और नौकरी के लिये आवश्यक योग्यताओ के अनुसार सर्टिफिकेट्स इकठ्ठा करते चले जाते है।
नौकरी के लिये आवश्यक योग्यताये,समय के साथ -साथ बदलते चले जाती है,किन्तु हम इस बदलाव के साथ अपनी योग्यताओ/सर्टिफिकेट्स को नहीं बढ़ा पाते है।
उम्र बढ़ने के साथ हमारी लालसा बढती/ घटती जाती है और तय नौकरी से कुछ अच्छा या कम की चाह में लगातार यहाँ-वहा प्रयास करते रहते है।
समय के साथ-साथ हमारी निराशा बढ़ते जाती है,और हम प्रयासों में लापरवाही बरतने लगते है।
हमसे कम उम्र के प्रतिभागी नई ऊर्जा और
योग्यताओ के साथ प्रतिद्वंदी बनते जाते है,और हमारे लिये प्रतियोगिता कठिन होते चले जाती है।
सीमित नौकरी और प्रतिभागियों की असीमित संख्या नौकरी को दुर्लभ बना देता है। योग्यताओ के साथ प्रतिद्वंदी बनते जाते है,और हमारे लिये प्रतियोगिता कठिन होते चले जाती है।
अब सबसे महत्वपूर्ण यह कि चूँकि हमने पढाई ही नौकरी पाने के लिए की होती है तो कोई और काम कर पाने में हम स्वयं को असमर्थ पाते है।
समय निकल जाने के बाद शिकायत और निराशा से भरे हुए कुछ भी करके अपना गुजरा करने के लिए बाध्य हो जाते है।
क्या करे-
शुरू से पढाई के साथ-साथ कोई तकनीकी ज्ञान भी लेते जाये।
नौकरी को ही लक्ष्य न बनाते हुये स्वतंत्र कार्य के लिए स्वयं को तैयार करे।
जब हम किसी कार्य में लग जाते है तो और कार्यो /नौकरियों के अधिक प्रस्ताव आने लगते है
और हमारे पास विकल्प आ जाता है कि किस काम को करे / क्या छोड़े।ज्यादा अच्छा होगा कि अपनी नौकरी की चिंता छोड़ कर दूसरो को नौकरी देने के बारे में सोचे।
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