अजीब बात तो यह है कि हम स्वयं को बुरा तो मानते है,
किन्तु बुराई को कम करने की कोशिश बिलकुल नहीं करते है।
फिर जिसको हम समाप्त ही नहीं करना चाहते है,
उसे सोच-सोचकर परेशान क्यों होना ?
हम बुरे है यह महत्वपूर्ण नहीं हो सकता किन्तु हममे कितनी अच्छी बाते है,
यह ज़रूर महत्व की हो सकती है।
स्वयं को बुरा कहकर दुखी होने से अच्छा है कि,
अपनी अच्छाइयो पर ध्यान दे और स्वयं को खुश रखे।
जिन बातो को हम बार-बार दोहराएंगे वह पक्का होता जाता है।
क्यों न अपनी अच्छाइयो को बढ़ाते जाये और देश / समाज की तरक्की की सोचे।
अच्छाईया बढती गई तो बुराइया अपने आप ही समाप्त होते जाएगी।
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