यदि यह कहा जाये की सम्पन्नता ख़ुशी लाती है,
तो फिर संपन्न लोग भी क्यों दुखी रहते है ?
तो फिर धन के लिए इतनी हाय-तौबा क्यों ?
सच में यदि देखा जाये तो जब तक हम स्वयं से खुश रहने की चेष्टा न करे,
तो दुनिया की कोई भी ख़ुशी हमें खुश नहीं कर सकती।
अर्थात खुश रहना अथवा दुखी होना हमारे अपने चाहने पर निर्भर करता है।
फिर अपने सुख अथवा दुःख के लिए किसी और को ज़िम्मेदार कैसे कहा जा सकता है ?
No comments:
Post a Comment