Monday, March 26, 2012

निराशा और आत्मविश्वास की कमी से कैसे बचे?


निराशा और आत्मविश्वास की कमी से कैसे बचे?
ज़रूरते/इच्छाए बढ़ी हुई हो और 
उस अनुपात में सफलता न मिल पाए तो निराशा होगी ही।  
गैर ज़रूरी उद्देश्यों को पूरा करने के चक्कर में 
हम ज़रूरी बातो को नज़रंदाज़ कर जाते है। 
समय निकल जाने के बाद पछतावे 
और निराशा के सिवाय हमारे हाथ में और कुछ नहीं रह जाता।
ज़रूरतों /इच्छाओ को  सीमित रखकर निराशा से बचा जा सकता है। 
निरंतर अपनी छमता को बढ़ाते रहे 
और वास्तव में जो आप कर सकते है उतनी ही ज़िम्मेदारी उठाये।
ऐसा करने से आत्मविश्वास में कमी नहीं आएगी।
ज़रा सोचकर देखिये कि जिन कामो में हम पारंगत होते है,
उन कामो को करते समय 
हमारे उत्साह और  आत्मविश्वास में कभी कमी नहीं होती।
छमता से अधिक ज़िम्मेदारी मिले तो आत्मविश्वास डगमगाएगा ही।
छमता को बढाने के लिए ज़िम्मेदारी उठाते रहना ज़रूरी होता है,
किन्तु स्वयं को नुकसान पहुचाकर उठाई गई ज़िम्मेदारी को 
समझदारी नहीं कही जाएगी।

Thursday, March 22, 2012

लक्ष्य प्राप्त करने हेतु


लक्ष्य प्राप्त करने  हेतु-
दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं होता है किन्तु क्या सब कुछ हम ही कर लेंगे ?
किसी  व्यक्ति ने अनेक  छेत्रो में सफलता पाई हो ऐसा शायद ही सुना होगा।
वास्तव में हम किसी एक ही विषय/छेत्र को चुने तो
ज्यादा से ज्यादा उस  विषय की जानकारी रख सकते है,
और अपने सफल होने की सम्भावना बढ़ा सकते है।
अपनी छमता को ध्यान में रखकर अपने लिए लक्ष्य निर्धारित करे
और अपने फैसले पर पूरा भरोसा करे।
अपने लक्ष्य का कोई नाम,आकार  ज़रूर तय करे।
स्वयं को सफलता दिलाने का संकल्प ले और प्रयास करे पूरे मन से।
यदि लक्ष्य के प्रति अपनी छमता पर शंका रखे तो हम अपने संकल्प से डगमगाने लगेंगे ।
निम्न को प्रतिदिन दोहराए-
१. अपनी सफलता के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त हूँ।
२. मुझे अपनी योग्यता/ छमता को निरंतर बढ़ाते रहना है।
३. मौका कभी भी मिल सकता है इसलिए मुझे हमेशा तैयार रहना है।
४. ईश्वर कभी मेरे साथ गलत नहीं देगा ।
५. गलत रास्तो से चलकर सफल नहीं हो सकते
बल्कि सफलता की सम्भावना ही  ख़त्म हो सकती है।
६. जब तक जीवन है सफल होने की सम्भावना बनी रहेगी।
मुझे अंतिम सांस तक अपना प्रयास जारी रखना है।
७. सफलता,जीवन में आये कष्टों को एक पल में मिटा देगा,
 इसलिए कष्टों की परवाह किये बिना अपना  श्रेष्टतम करने का प्रयास करूंगा।
८. जीवन यापन के लिए कोई भी अन्य कार्य करना पड़े किन्तु अपने लक्ष्य को सदैव ध्यान में रखूँगा।
९. मुझे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता।

Monday, March 19, 2012

Seminar for PSC competition







Monday, March 12, 2012

सेमिनार में पूछे गए प्रश्न

प्रश्न - मै किसी के बुरे समय में उसकी मदद करता हूँ,
लेकिन मेरे बुरे समय में वह पीछे हट जाता है। क्या करू ?
उत्त्तर- मदद के बदले मदद चाहना,यह मदद न होकर सौदा हो जाता है।
निश्वार्थ भाव से मदद करते रहो तो कभी स्वयं को मदद की ज़रुरत ही नहीं पड़ेगी।
प्रश्न - निश्वार्थ भाव से की गई मदद,किसी स्वार्थी के मन को कब तक बदल पायेगा ?
उत्त्तर- अपनी छमता से अधिक और अपना नुकसान कराके, किसी की मदद मत करो।
ऐसी मदद को ज्यादा समय तक बनाये नहीं रख पाएंगे। स्वयं को सक्षम बनाने पर ध्यान दे।
किसी के बदल जाने से हमारी छमता नहीं बढ़ेगी,
किन्तु स्वयं के सक्षम हो जाने पर दूसरो को नुकसान से ज़रूर बचाया जा सकता है। 

Sunday, March 11, 2012

नजरिया बदल ले

सुख अपने साथ दुःख का अंदेशा लेकर आता है,
और दुःख अपने साथ सुख की उम्मीदे लेकर आती है।
नजरिया बदल ले तो हर पल जश्न का हो जायेगा।
 

Thursday, March 8, 2012

सम भाव में रहे



अक्सर यह होता है की जिससे हम प्रेम करते है उससे अति तक प्रेम करते है,
और जिससे नफरत करते है उससे अति तक नफरत करते है।
जिससे जितना अधिक प्रेम करते है, हम उससे अपेक्षाए भी बहुत अधिक लगाये रहते है,
और जिससे नफरत करते है, उसकी हर एक बात पर अपने लिए बुरे की उम्मीद करते है।
कहा जाता है की अति हमेशा बुरी होती है फिर वह प्रेम की हो या नफरत की।
जब हम किसी के प्रति अपने अति प्रेम का प्रदर्शन करते है,
तो वह किसी अनजाने डर से भर जाता है और हमसे दूरी बना सकता है,
और यदि ऐसा नहीं होता है तो देखने वाले दूसरे लोग उसे डराने की कोशिश करते है
या हमें किसी तरह से विचलित करते है।
एक बार हमसे अधिक प्रेम पाया हुआ हमसे हमेशा ऐसे ही प्रेम की अपेक्षा रखता है।
यदि उसकी अपेक्षा से  हम ज़रा सा भी कम निकले कि, वह हमारे लिए बुरा सोचने लगता है। 
ठीक ऐसे ही जिनसे हम अति नफरत करते है वह हमारे अचानक किये गए  प्रेमपूर्ण व्यव्हार को भी गलत नज़र से ही देखेगा और हमारे अच्छा चाहने पर भी वह  बुरा ही चाहेगा ।
एक बार जो रिश्ता बन जाये (प्रेम/नफरत) उसे बदल पाना बहुत कठिन होता है।
कौन कब दोस्त से दुश्मन हो जाये या किस दुश्मन से दोस्ती हो जाये यह समझ पाना बहुत मुश्किल है। 
यदि हम किसी के प्रति बहुत अधिक प्रेम और नफरत को प्रदर्शित न करे तो संभव है कि सभी के लिए अच्छा बने रहे। किसी के प्रति हमारा अति प्रेम या नफरत, हमारे आस -पास मौजूद दूसरे लोगो को खटक सकता है 
और वे हमारे लिए कठिनाई पैदा कर सकते है।
यदि हम सम भाव में रहने की कोशिश करे,
सभी से सामान व्यवहार रखे तो शायद हम ज्यादा खुश रह सकते है।
 एक बार सम भाव में रहकर देखिये,सभी हमारे अपने नज़र आयेंगे।



 

 

Tuesday, March 6, 2012

कुछ प्रश्न कुछ उत्त्तर


    -कुछ प्रश्न कुछ उत्त्तर जो सेमिनार  से लिए गए है-
प्रश्न १. उदासी और अकेलेपन से बचने के लिए क्या किया जा सकता है? 
उत्त्तर- अपनी छ्मता/योग्यता का उपयोग दूसरो के लिए किये तो कभी अकेले नहीं होंगे।
निश्वार्थ भाव से ज़रूरतमंदो की मदद करे तो कभी उदासी नहीं आएगी।
उपरोक्त दोनों  तरह से आप स्वयं को ही मज़बूत बना रहे होते है। 
प्रश्न 2. अपने ऊपर भरोसा कैसे करे ?
उत्त्तर- अपने अन्दर की अच्छाइयो और बुराइयों को रोज़ लिखे और देखे कि क्या बढ़ रहा है।
आप स्वयं को जैसा बनाना चाहते है (अच्छा /बुरा ),उसकी अधिकता सुनिश्चित करे।
स्वयं ही फैसला करे अपने अच्छे और बुरे होने का। 
आपको स्वयं की नज़र में सक्षम होना बेहद ज़रूरी है अपने ऊपर भरोसा कर पाने के लिए।  

Monday, March 5, 2012

भरोसा ही ईश्वर है

हम जिस पर भरोसा करते है बस वो ही तो ईश्वर है।
हम मंदिर/मस्जिद/गुरुद्वारा/चर्च जाते है और प्रार्थना करते है क्यों ?
क्योकि हम यह भरोसा करते है की वहा कोई है जो हमारी सुनता है और मदद करता है।
हम अपने बुरे कर्मो की वजह से दुखी होते है और दोष ईश्वर को देते है,
और ऐसा करके हम अपने भरोसे को ही कमज़ोर करते है।
गौर करे तो पाएंगे की हमारे किये अच्छे कर्म हमारे भरोसे को और मज़बूत करते है,
जबकि बुरे कर्म हमारे भरोसे को कमज़ोर बनाते है।
ईश्वर दिखाई नहीं देते लेकिन कदम-कदम पर अपनी उपस्थिति का अहसास 
हमें मिलने वाली सफलताओ और असफलताओ के रूप में कराते रहते है। 
हम उस ईश्वर को जब स्वयं के साथ मानते है,
तब कई मुश्किल दिखने वाले कार्य बड़ी आसानी से होते चले जाते है।
क्या सच में यह कार्य हमने नहीं, किसी और ने किये होते है ? 
सब कुछ हमारे भरोसा करने और नहीं करने पर ही निर्भर करता है।
तो, जब भी मन में यह शंका उठे की ईश्वर है या नहीं,
तो अपने भरोसे की मजबूती को जाँच कर देखिएगा।
ईश्वर  कही और नहीं,हमारे भरोसे में ही निवास करते है। 
यदि हम स्वयं पर भरोसा नहीं कर पाए तो दूसरो के भरोसा रुपी ईश्वर की पूजा में
अपना पूरा जीवन, स्वयं को धोखा देते खो देंगे।
हम जिस पर भरोसा करते है बस वो ही तो ईश्वर है।

 


Sunday, March 4, 2012

-सेमिनार के प्रतिभागियों द्वारा पूछे गए प्रश्न और दिये गए उत्त्तर-

-सेमिनार  के प्रतिभागियों  द्वारा  पूछे गए प्रश्न और  दिये गए उत्त्तर-
प्रश्न-१- मस्ती और शांति में क्या अंतर है? 
उत्त्तर  - विचार अच्छे रहे तो मस्ती में भी शांति है और शांति में भी मस्ती है।
गौर किया जाये तो सब कुछ विचारो का ही खेल है।  
प्रश्न-2- जब सब ओर हार दिखाई दे, कोई भी रास्ता न सूझे तब क्या करे? 
उत्त्तर  -कुछ भी देर तक नहीं रहता है,सुख हो चाहे दुःख हो।
अपना प्रयास पूरे मन से करे और ईश्वर पर भरोसा रखे।
प्रश्न-3- मैं अपने आप को बहुत कमज़ोर महसूस करता हूँ ? सहायता करे।
उत्त्तर  -कोई, तब ही तक बड़ा हो सकता है जब तक हम स्वयं को छोटा समझते रहे ।
आत्मविश्वास  की कमी हमें हमेशा छोटा बनाये रखती है।
अपनी खूबियों को पहचान कर उसे और बढ़ाये तथा अपनी कमजोरियों को नज़रंदाज़ कर दे।
जिस भी को आप दोहराएंगे वह ही बढती जाती है, फिर क्यों न खूबियों की ही बात करते रहे ताकि  कमजोरी स्वयं ही दूर हो जाये। 
प्रश्न-4- हम अपने आप को ओवरकान्फिद्देंस से कैसे बचाये ? 
उत्त्तर  -हम सब कर सकते है यह सही है, किन्तु सब कुछ हम ही कर लेंगे यह सही नहीं है।
 जो भी हमारी  छमता/योग्यता  हो उससे दूसरो को क्या फायदा हो सकता है,
 बस यह विचार करते रहे तो हम ओवरकान्फिद्देंस से बचे रहेंगे
 

Saturday, March 3, 2012

सफलता का लाभ

अगर हम यह ध्यान रखे कि हमारी योग्यता  किस प्रकार दूसरो  के काम आ सकती है,
समाज के लिए इसका किस प्रकार इसका  सदुपयोग हो सकता है,
तो यकीन मानिये हमारी योग्यता कभी भी हमें निराश नहीं करेगी।
अपने लिए और सिर्फ अपने लिए जीने कि चाह,
हमें घोर निराशा के दलदल  में  धकेल सकती है।
प्रकृति  सिर्फ  देने  में यकीन करती है
और जब हम भी देने कि चाह  रखने लगते  है,
तो सारी  श्रृष्टि हमारी सहायता  के लिए तत्पर  हो जाती  है।
यदि आपको लगता है कि आप अपने हर प्रयास में असफल हो रहे है,
कही से मदद नहीं मिल रही है,आपके अपने आपका साथ नहीं दे रहे है,
तो एक बार अपने किये प्रयासों पर फिर से गौर करे।
आपकी सफलता से  किस-किस को लाभ हो सकता है इस पर विचार करे।
यदि सफलता सिर्फ आपके आस-पास को ही लाभ देने वाली हुई
तो ऐसी सफलता के लिए आपको अपने प्रयासों पर ही निर्भर रहना होगा।
यदि दूसरो तक आपकी सफलता का लाभ पहुचने वाला होगा
तो आपके प्रयासों में दूसरो  कि शुभकामनाये भी जुड़ जाएँगी और रास्ता आसन हो जायेगा।
भरोसा  कीजिये और एक बार अपनी सफलता को दूसरो के साथ जोड़कर देखिये,
सफलता तो मिलेगी ही, आपका हर एक पल जश्न भरा हो जायेगा। 
"विचार बदलो दुनिया बदलो "के ब्लॉग कि सफलता के लिए आप सभी को बहुत -बहुत धन्यवाद।
बहुत कम समय में १२०० से अधिक लोगो ने ब्लॉग को पढ़ा है और सुझाव दिए है। पुनः आप सभी का धन्यवाद।